अप्रैल 1991 में देश के अखबारों में एक छोटी सी खबर छपी. खबर पीवी नरसिम्हा रावके बारे में थी. इसमें कहा गया था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री राव अब राजनीति से संन्यास लेकर आंध्र प्रदेश के अपने गांव जाना चाहते हैं, जहां बाकी बचा जीवन लिखने-पढ़ने में गुजारेंगे. वो दिल्ली के अपने बंगले को खाली करके सामानों की पैकिंग करा रहे थे.
तभी 21 मई को ऐसी खबर आई, जिसने उनकी भविष्य की योजनाओं को बदलकर रख दिया. राजीव गांधी चेन्नई के पास श्रीपेराम्बदूर में भाषण देने गए थे, तभी आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई. इसके बाद लोकसभा चुनावों में परिणामों की जो स्थिति बनी, उसमें कांग्रेस ने सर्वसम्मति से उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त पाया.
इसके बाद उनका बंधा हुआ सामान खुल गया. वो उस दौर में देश के प्रधानमंत्री बने, जब आर्थिक तौर पर देश सबसे ज्यादा बुरे हाल में था. कुछ समय पहले ही चंद्रशेखर सरकार को अपना सोना बेचना पड़ा था. राव के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं – पहली अल्पमत सरकार को चलाना और दूसरा देश को आर्थिक बदहाली से निकालना. उन्होंने दोनों ही काम बखूबी किये. हालांकि दोनों के लिए उन्हें तलवार की धार पर चलना पड़ा. ऐसे ऐसे करतब दिखाने पड़े कि वो ना केवल आलोचनाओं के शिकार बने बल्कि सोनिया गांधी से संबंधों में इस तरह दरार पड़ी कि वो कभी भर नहीं पाई.
सोनिया उनके फोन होल्ड करा देती थीं
यह कहां से शुरू हुआ यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन नरसिम्हा राव खिन्न थे कि सोनिया गांधी उनके फोन को जरूरत से ज्यादा समय के लिए होल्ड करा देती थीं. मिलने जाने पर इंतजार कराती थीं. जब ऐसा कई बार हुआ तो अपने अलग रास्ते बनाने का फैसला किया.
उन्होंने कई साल बाद नजदीकी पत्रकार से कहा कि नरसिम्हा राव तो फोन पर सोनिया के देर से आने का इंतजार कर सकते थे लेकिन प्रधानमंत्री नहीं कर सकता था, अगर ऐसा होता तो ये प्रधानमंत्री पद की तौहीन होती. दूरियां बढ़ती गईं. सोनिया गांधी के समर्थकों को लगता था कि वो जानबूझकर नेहरू-गांधी परिवार के विश्वस्त लोगों को हाशिए पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं.
कांग्रेस में भी उनके आर्थिक सुधारों पर उठते थे सवाल
उन पर तरह तरह के आरोप भी लगे, जिसमें भ्रष्टाचार से लेकर मौनी बाबा बनने और कांग्रेस में अपनी अलग कोटरी बनाने की थी. लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही जब रिजर्व बैंक के गर्वनर रहे मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया. इसके बाद देश में पहली बार बड़े पैमाने पर ऐसे आर्थिक सुधार शुरू हुए, जिसकी उस समय बहुत आलोचनाएं हुईं.
कांग्रेस में उनके विरोधी उन पर आरोप लगाने लगा कि वो देश को गांधी-नेहरू की नीतियों के खिलाफ ले जा रहे हैं. लेकिन इन नई आर्थिक नीतियों और उदारीकरण का ही परिणाम था कि देश बदलने लगा. विकास की तस्वीर ही बदलने लगी. ये नीतियां ही आज के भारत की नींव बनी, जिसमें दुनिया में बड़ी आर्थिक ताकतों में गिना जाने लगा. तेजी से देश का आर्थिक परिदृश्य बदला और समृद्धि आने लगी.
लखूभाई पाठक ने कोर्ट में घसीटा
नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार ने पांच साल तक जिस तरह खुद को बनाए रखा, उसमें उन पर बहुमत देते रहने के लिए कई दलों के सांसदों को मोटा पैसा देने के आरोप लगे. पहली बार पॉवरब्रोकर शब्द उन्हीं के राज में मुखर तौर पर सामने आया. कुछ भ्रष्टाचार के आरोप उन पर सीधे-सीधे लगे. लंदन के अचार व्यवसायी लखूभाई पाठक ने उन पर उनका पैसा खाने का आरोप लगाते हुए उन्हें कोर्ट में घसीट लिया. विवादित चंद्रा स्वामी के साथ उनके रिश्तों को लेकर भी तमाम सवाल उठते रहे.
बाबरी ध्वंस में जिम्मेदार ठहराए गए
6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी ढांचे का ध्वंस हुआ तो नरसिम्हा राव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया. माना गया कि इसमें उनकी भी मौन सहमति थी, तभी केंद्र सरकार ने उसे रोकने के लिए वो कदम नहीं उठाए, जो उठाए जाने चाहिए थे. नरसिम्हा राव की जीवनी “हाफ लॉयन – हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफार्म्ड इंडिया” के लेखक विनय सीतापति के अनुसार, उनका शोध बताता है कि यह बात ग़लत है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय नरसिम्हा राव सो रहे थे या पूजा कर रहे थे. नरेश चंद्रा और गृह सचिव माधव गोडबोले इस बात की पुष्टि करते हैं कि वो उनसे लगातार संपर्क में थे और एक-एक मिनट की सूचना ले रहे थे.
जनसत्ता के पूर्व संपादक स्वर्गीय प्रभाष जोशी की जीवनी “लोक का प्रभाष” में भी नरसिम्हा राव के हवाले से दावा किया गया कि उन्होंने उस समय जो किया, “सोच समझकर किया.” जीवनी में दावा किया गया कि अयोध्या मामले में प्रभाष जोशी संघ परिवार और नरसिंह राव के बीच बातचीत का हिस्सा थे.
कांग्रेस में अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी का विद्रोह
इसके बाद ही कांग्रेस में उनकी विरोधी लॉबी उनके खिलाफ सक्रिय हो गई. 1993 के शुरुआती महीनों में ही नतीजा अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी और शरद पवार के विद्रोह के रूप में सामने आ गया. हालांकि राव ने उसका सामना शतरंज के मजबूत खिलाड़ी की तरह किया.
उपलब्धियां भी कम नहीं
नरसिम्हा राव के सत्ता में आने के दो हफ़्ते बाद ही भारत ने बैंक ऑफ़ इंग्लैंड को 21 टन सोना भेजा, ताकि भारत को बदले में विदेशी डॉलर मिल सके और वो कर्ज़ की किश्तें भरने में देरी से बच सके. हालांकि उनके हिस्से में बेहतर बातें काफी ज्यादा हैं. मसलन उन्हीं के पीएम रहते पंजाब में आतंकवाद का खात्मा हुआ. उसी दौरान परमाणु बम और मिसाइल पर काम शुरू हुआ, जिसकी परिणति वर्ष 1998 में अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पोखरण में परमाणु परीक्षण के रूप में हुई.